Monday, November 13, 2006

रेत पे नाम!!

सुना है यादें संजोकर रखी जाती हैं इस गतिमान पर स्थिर ह्रदय में.....

मेरी भी कुछ यादें उससे जुड़ी हुई हैं। न जाने हम कब तक समंदर के किनारे बैठे रहते थे, हर एक लहर को अपने पास आते और थोड़ा सा भिगोकर जाते हम साथ बैठे देखा करते। वो रेत पे मेरा नाम लिखती और में उसका। और अगली सुबह हम दोनों का नाम समंदर में समां चुका होता था। यह विशाल समंदर हमें पूरे दिन निहारा करता था। हमारी प्यारी बातें शांत भाव से सुना करता , हमारे झगडे पे मुस्कराता, वो मुझे घूंसे मारती और में भागता तो जैसे ये भी उसके साथ मुझे पकड़ने के लिए दौड़ता।

वो मुझे कहती थी की "पंकज! ये लहरें हमारी बातें सुनाने के लिए आती हैं न?"

"नही! ये सारे जहाँ से खूबसूरत इन पैरों में लिपटने आती हैं और इस ज़न्नत में मिल जाती हैं।"

वो मुझे धक्का देकर गिरा देती और खिलखिलाते हुए कहती

"धत! बेवकूफ"

और हम दोनों हंसने लगते। पर न जाने क्यों वो बार -बार मुझे हमारी दोस्ती ही याद दिलाती। क्या ये सब प्यार नही था? दोस्ती भी तो प्यार का दूसरा नाम है। एक दिन हिम्मत करके मैंने उससे कहा की "में तुमसे प्यार करता हूँ"। उसने बड़े रूखे मॅन से ताल दिया। मैंने फिर कहा उसने अनसुना कर दिया। फिर धीमे से बोली

"तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो और में तुम्हारी दोस्ती खोना नही चाहती हूँ "।

मैंने अपनी पलकें बंद कर ली आँसूओ को आंखों में ही रोकने के लिए, पर एक-दो आंसू बाहर छ्लक ही आए।

दरअसल.. वो किसी मुकाम पे पहुँचाना चाहती थी और वह समझती थी की मेरा प्यार उसके पैरों में बेडियाँ दाल देगा। वो भूल गई की उसके मरे हुए आत्मविश्वास को मैंने ही साँसें दी थीं। मैंने ही उसे वो सपना दिखाया था। मै वहाँ से उठकर चला आया। अगले दिन उसने समन्दर किनारे आना छोड़ दिया। कुछ दिन बाद शहर भी छोड़ दिया।

अब समन्दर की रेत पेर उसी का नाम था क्यूंकि मै तो उसी का नाम लिख सकता था।

इन रेतों में मेरा नाम लिखने वाला कोई नहीं था, कोई नहीं... ।