Tuesday, February 23, 2010

पिछ्ले पन्नो से कुछ - रेत पे नाम!!

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सुना है यादें संजोकर रखी जाती हैं इस गतिमान पर स्थिर ह्रदय में.....

मेरी भी कुछ यादें उससे जुड़ी हुई हैं। न जाने हम कब तक समंदर के किनारे बैठे रहते थे, हर एक लहर को अपने पास आते और थोड़ा सा भिगोकर जाते हम साथ बैठे देखा करते। वो रेत पे मेरा नाम लिखती और में उसका। और अगली सुबह हम दोनों का नाम समंदर में समां चुका होता था। यह विशाल समंदर हमें पूरे दिन निहारा करता था। हमारी प्यारी बातें शांत भाव से सुना करता , हमारे झगडे पे मुस्कराता, वो मुझे घूंसे मारती और में भागता तो जैसे ये भी उसके साथ मुझे पकड़ने के लिए दौड़ता।

वो मुझे कहती थी की

"पंकज! ये लहरें हमारी बातें सुनने के लिए आती हैं न?"

"नही! ये सारे जहाँ से खूबसूरत इन पैरों में लिपटने आती हैं और इस ज़न्नत में मिल जाती हैं।"

वो मुझे धक्का देकर गिरा देती और खिलखिलाते हुए कहती

"धत! बेवकूफ"

और हम दोनों हंसने लगते। पर न जाने क्यों वो बार -बार मुझे हमारी दोस्ती ही याद दिलाती। क्या ये सब प्यार नही था? दोस्ती भी तो प्यार का दूसरा नाम है। एक दिन हिम्मत करके मैंने उससे कहा की "मै तुमसे प्यार करता हूँ"। उसने बड़े रूखे मन से टाल दिया। मैंने फिर कहा उसने अनसुना कर दिया। फिर धीमे से बोली

"तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो और में तुम्हारी दोस्ती खोना नही चाहती हूँ "।

मैंने अपनी पलकें बंद कर ली आँसूओ को आंखों में ही रोकने के लिए, पर एक-दो आंसू बाहर छ्लक ही आए।

दरअसल.. वो किसी मुकाम पे पहुँचाना चाहती थी और वह समझती थी की मेरा प्यार उसके पैरों में बेडियाँ दाल देगा। वो भूल गई की उसके मरे हुए आत्मविश्वास को मैंने ही साँसें दी थीं। मैंने ही उसे वो सपना दिखाया था। मै वहाँ से उठकर चला आया। अगले दिन उसने समन्दर किनारे आना छोड़ दिया। कुछ दिन बाद शहर भी छोड़ दिया।

अब समन्दर की रेत पर उसी का नाम था क्यूंकि मै तो उसी का नाम लिख सकता था।

इन रेतों में मेरा नाम लिखने वाला कोई नहीं था, कोई नहीं... ।

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ज़िन्दगी की किताब पर धूल जम गयी है……न जाने कबसे अपने बन्द कमरे की खिड्किया भी नही खोली…ताज़ी हवा से शायद अब दम घुट जाये… कम्फ़र्ट ज़ोन से बाहर आने का डर भी है……

मेरे काम की काफ़ी चीज़े मेरे तकिये के पास ही रहती है…बची कुछ चीज़े बेड से सटी हुई मेज पर… कुछ खास नही, बस ’अहा ज़िन्दगी!’ के कुछ पुराने एडीशन्स, ’क्रेस्ट’ की कुछ कापिया, चन्द किताबे जैसे अभी ’जापानीज वाईफ़’, ’कपोचीनो ड्स्क’,’स्लो मैन’ और ’फ़्रेन्च लवर’, मेरी कुछ बूढी डायरिया, पिता जी का एक पुराना पत्र, मेरे कमरे की चाभिया, वालेट और हमारा कम्पनी आई कार्ड…

खिडकी मेज के बगल मे है, खुलने से हवा चीज़ो को इधर-उधर कर सकती है…एक ऐसी ही हवा इस वीकेन्ड आयी थी……ज़िन्दगी की किताब के पन्ने इधर उधर कर गयी..ये भी भूल गया कि किस पेज पर था…कन्शन्ट्रेशन प्राब्लम मेरे साथ हमेशा से है…

२-३ दिन से पूरा साहित्यमय हो गया हू..और कुछ पुरानी पोस्ट्स खुल गयी है…… जिन्हे ऐसे ही हवाओ से छुपा कर रखा था….

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Sunday, February 21, 2010

स्वप्न!!

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तुम्हे क्या कहूं ख़ुद ही बताओ,
अपने नैनो की भाषा
हमें भी समझाओ,

शायर की ग़ज़ल कहूं या कहूं
'पंकज' की कविता,
आंखों को तेरी कमल कहूं
या सूर्योदय मैं सविता ।

झील सी इन आंखों को हल्के हल्के,
उठाने के बाद जैसे ही देखती हो,
हल्का सा मुस्कुराकर ,
जब कुछ कहती हो ।
पता नही क्यों कोई
झकझोरता है दिल को,
लगता है की हेमंत में आया हो
पवन का झोंका,
नस-नस में होती है चुभन
हृदय कहता है अब स्पर्श
कर ही लूँ तेरा तन,
स्पर्श करने से हाथ में आती
नही हो,
फिसलती हो ऐसे ॥

जैसे मैंने स्पर्श किया हो कोई स्वप्न!!
कोई स्वप्न...!!

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पुरानी हसीन यादो मे से कुछ यादे है जो ऐश्वर्य राय से जुडी है :) जवानी की दहलीज पर पाँव थे और अपने दोस्तो की गर्लफ़्रेडस मे इन्डायरेक्टली चर्चे…… वो कविताये, जो मै ऐश के लिये लिखता था, वो मेरे कमीने दोस्त उनके नामो के साथ उनकी  गर्लफ़्रेडस को देते थे… (सिर्फ़ कमीना बोलकर मै उन्हे बख्श रहा हू :))

एक डायरी थी जिसके हर एक पेज पर ऐश की फोटो थी…… एक बार उनका पता हाथ लग गया तो पिता जी की हार्ड अर्न्ड कमाई से वो डायरी उन्हे कोरियर कर दी गयी…उस जमाने मे कोरियर भी शायद बडी चीज थी…पता नही कि डायरी उन्हे मिली भी कि नही, पर एक अच्छा खासा कलेक्शन हाथ से गया :)

तब बस ’नीली’ या ’झील सी’ आँखे ही कविताओ मे बधती थी…ये सब कुछ ऊपर लिखी ’झील सी’ आँखो का एक्स्प्लेनेशन है….. :)

साफ़्टवेयर लाइन मे इसे प्रोएक्टिवनेस बोलते है!!! :)

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Sunday, February 14, 2010

स्टेचू….

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याद है, तुमने जब मुझे
भरी रोड पर ’स्टेचू’ बोला था,
वो लम्हा फ़्रीज़ हो गया था,
सिर्फ़ तुम्हारे एक ’पास’ के इन्तजार मे.....

आज जब ज़िन्दगी भागती है,
हर एक लम्हे पर पाव रखकर....
मै मजबूर लम्हो के बीच,
खडा सोचता हू, कि
तुम आओ और ’स्टेचू’ बोल दो....

और इस बार कोई ’पास’ नही.......

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P.S. सभी चाहने वालो को ’वैलेन्टाईन्स डे’ की शुभकामनाये… स्पेशली डा अनुराग को, जो आज के ही शुभ मौके पर विवाह के शुभ बन्धन मे बधे थे……

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